‘भगवान श्रीकृष्ण’ महाकाव्य भारतीय साहित्य का एक महत्वपूर्ण काव्य है, जिसे महाकवि माखनलाल चतुर्वेदी ने रचा है। यह काव्य भगवान श्रीकृष्ण के जीवन, उनके लीलाओं, और उनके धर्मीय सन्देशों पर आधारित है। यह काव्य उस समय की समाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक परिस्थितियों को प्रकट करता है और श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व को गहराई से अभिव्यक्त करता है।
महाकवि माखनलाल चतुर्वेदी: माखनलाल चतुर्वेदी भारतीय साहित्य के प्रमुख कवि और समाजसेवी थे। उन्होंने भारतीय समाज में साहित्य, धर्म, और समाज सुधार के क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके कविताएँ भारतीय समाज की समस्याओं, राष्ट्रीय और धार्मिक उत्थान के विभिन्न पहलुओं को छूने वाली हैं। ‘भगवान श्रीकृष्ण’ उनकी महत्वपूर्ण काव्यकृतियों में से एक है, जो उनकी विचारधारा, कला और साहित्यिक प्रतिभा का प्रतीक है।
काव्य की विशेषताएँ: ‘भगवान श्रीकृष्ण’ महाकाव्य में भगवान श्रीकृष्ण के बाल्य, किशोरावस्था, और उनकी विभिन्न लीलाएं विस्तार से वर्णित की गई हैं। इस काव्य में उनकी रासलीला, गोपियों के संग नाच, और उनके धर्मीय उपदेशों का महत्वपूर्ण स्थान है। चित्रण और रसवाद में यह काव्य अत्यंत समृद्ध है और पाठकों को भगवान श्रीकृष्ण के दिव्य स्वरूप को अनुभव कराता है।
काव्य का महत्व: ‘भगवान श्रीकृष्ण’ महाकाव्य न केवल कला और साहित्य का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, बल्कि यह धार्मिक और आध्यात्मिक संदेशों को समाज के माध्यम से प्रस्तुत करता है। यह काव्य भगवान श्रीकृष्ण के जीवन और संदेशों की गहराई में जाने का एक अद्वितीय अवसर प्रदान करता है और उसे आधुनिक युग में भी प्रासंगिक बनाता है।
इस प्रकार, ‘भगवान श्रीकृष्ण’ महाकाव्य भारतीय साहित्य का एक अद्वितीय और महत्वपूर्ण काव्य है, जो धर्म, साहित्य, और मानवता के संदेशों को साझा करता है। यह काव्य हमें भगवान श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व के प्रति समर्पित करता है और हमें उसके धार्मिक और आध्यात्मिक सिद्धांतों का विचार करने के लिए प्रेरित करता है।3.53.5